Followers

मंगलवार, 29 नवंबर 2011

चेहरों की कहासुनी





जहां चेहरे कहते रहते हैं ,जहां चेहरे सुनते रहते हैं ,
कई रातों को जागा करते हैं  ,कई सपने बुनते रहते हैं ...........। 


देखिए कि मित्र मंडली , फ़ेसबुक पर क्या कह सुन रही है .



एक तन पर सोने के तार खिंचे, एक तन पर सूत के तार नहीं
इसलिये बगावत करता हूं, ये अन्याय मुझे स्वीकार नहीं..
 
 

देखा जब नहीं उनको और हमने गीत
नहीं गाया
जमाना हमसे ये बोला की फागुन
क्यों नहीं आया
फागुन गुम हुआ कैसे ,क्या तुमको कुछ
चला मालूम
कहा हमने ज़माने से की हमको कुछ
नहीं मालूम
पाकर के जिसे दिल में ,हुए हम खुद से बेगाने
उनका पास न आना ,ये हमसे तुम जरा पुछो
बसेरा जिनकी सूरत का हमेशा आँख में रहता
उनका न नजर आना, ये हमसे तुम जरा पूछो
जीवितं है तो जीने का मजा सब लोग ले
सकते
जीवितं रहके, मरने का मजा हमसे
जरा पूछो
रोशन है जहाँ सारा मुहब्बत की बदौलत
ही
अँधेरा दिन में दिख जाना ,ये हमसे तुम
जरा पूछो
खुदा की बंदगी करके अपनी मन्नत पूरी सब
करते
इबादत में सजा पाना, ये हमसे तुम
जरा पूछो
तमन्ना सबकी रहती है, की जन्नत
उनको मिल जाए
जन्नत रस ना आना ये हमसे तुम जरा पूछो
सांसों के जनाजें को, तो सबने
जिंदगी जाना
दो पल की जिंदगी पाना, ये हमसे तुम
जरा पूछो
 

बधाई....!!!! लड़ कर जीते कटक मे ....
 
 

मेरी ज़िन्दगी ने तो मौत से दोस्ती कर ली,
अब मौत की खुशी की खातिर मौत ही सही !!
 

  • कैसे कैसे हादसे सहते रहे,
    हम यूँही जीते रहे हँसते रहे

    उसके आ जाने की उम्मीदें लिए
    रास्ता मुड़ मुड़ के हम तकते रहे

    वक्त तो गुजरा मगर कुछ इस तरह
    हम चरागों की तरह जलते रहे

    कितने चेहरे थे हमारे आस-पास
    तुम ही तुम दिल में मगर बसते रहे- वाजिदा तबस्सुम
 
 

स्‍व. राजीव गांधी के तीन खास सपने ... जो हमें उस वक्त बहुत पसंद थे ... पहला ... नौकरियों में डिग्रियों की अनिवार्यता खत्‍म हो .... दूसरा .. गॉंव गॉंव और बच्चे बच्चे तक सूचना प्रौद्योगिकी पहुँचे .... मीडिया निष्‍पक्ष , सिस्‍टम पारदर्शी एवं स्‍वच्‍छ तथा हर देशवासी उच्‍च शिक्षित बने, हर आदमी को रोजगार, काम धंधा मिले और देश में हर एक को रोजी व रोटी मुनासिब मयस्सर हो, संप्रदायिकता व धर्मांधता, गरीबी व अशिक्षा मुक्‍त भारत हो, देश की नदियां प्रदूषण मुक्‍त हों, प्रदूषण से मुक्‍त स्‍वचछ पर्यावरण हो, देश में नई हरित व श्‍वेत क्रांति हो, ग्‍लोबलाइजेशन के दौर में भारत नंबर 1 हो, विश्‍वमंच पर भारत सर्व सम्‍मानित प्रमुख स्‍थान ग्रहण करे ..... उम्‍मीद है कांग्रेस राजीव जी के कम से कम ये तीन सपने कभी नहीं भूलेगी..... हमें नहीं पता कि आज कितने कांग्रेसी राजीव जी के इन सपनों को हकीकत में बदलने के पथ पर अग्रसर हैं .... हालांकि उस वक्‍त राजीव जी के निधन के वक्‍त सभी कांग्रेसियों ने बयान जारी कर उनके अधूरे कामों और सपनों को पूरा करने का देश से वायदा अवश्‍य किया था ... किंतु जब युवा कांग्रेस का सम्‍मेलन हुआ है तो हमें राजीव जी के सपने को याद दिलाना कुछ उचित प्रतीत हुआ ... उनके सपने के जिक्र बगैर युवा कांग्रेस सम्‍मेलन की बात अधूरी रह जाती क्‍योंकि राजीव जी की पहचान देश के युवा नेता के रूप में ही थी ....
 
 

प्रसिद्ध कथाकार उदयप्रकाश ने सवाल उठाए हैं - साहित्य क्या पीड़ाओं, यंत्रणाओं और अन्यायों कोछुपाने के लिए शब्दों की कला-संयोजनाओं का भाषिक- क्षेत्र है ? या साहित्य की कोई मानवीय प्रतिश्रुति है?
 
 

न मंदिर में सनम होते, न मस्जिद में खुदा होता
हमीं से यह तमाशा है, न हम होते तो क्या होता
 
 

यूँ तरस मत खाइए हम वक़्त के मारे नहीं हैं ....
जंग हारे हों भले हम होंसला हारे नहीं हैं

दीप दिल में इक तुम्हारे प्यार का जलता रहे बस
फिर नहीं गम भाग्य में ये चाँद ये तारे नहीं हैं
...
हाथ में ले कर दुधारा हम समर में हों खड़े पर ...
ये यकीं रखना हमारे वार दोधारे नहीं हैं ...............

हम अगर बागी हुए तो ताज होंगे ठोकरों में .....
हम फकत खामोश हैं हम लोग बेचारे नहीं हैं ....

कामना तो ताकती है आज भी रस्ता तुम्हारा
हाँ मगर इस देह के अरमान अब कुंवारे नहीं हैं
 
 

‎... पियक्‍कड़ अगर दिल्‍ली के रामलीला मैदान में डट जाएं तो अन्‍ना का मामला इस बार कुछ जम सकता है लेकिन अन्‍ना की टाम को पहले पियक्‍कड़ों का आहवान करना होगा। चीयर्स...जय हो।
 
 

कांग्रेस के हाथ को मरोड़ने के लिए चश्मे पर मोहर लगाना भाई लोग.....आदमपुर और रतिया उपचुनाव के लिए मेरे प्रिय मित्रों को शुभकामनाएं...
 
 

बधाई....!!!! लड़ कर जीते कटक मे ....
 
 

राखी सावंत भारत की किराना दुकान है और सनी लिओन वॉल मार्ट! अब आप बताईए FDI के पक्ष में हैं या नहीं!
 
 
ऐ मुँह मोड़ के जाने वाली, जाते में मुसकाती जा
मन नगरी की उजड़ी गलियाँ सूने धाम बसाती जा

दीवानों का रूप न धारें या धारें बतलाती जा
मारें हमें या ईंट न मारें लोगों से फ़रमाती जा

और बहुत से रिश्ते तेरे और बहुत से तेरे नाम
आज तो एक हमारे रिश्ते मेहबूबा कहलाती जा

पूरे चाँद की रात वो सागर जिस सागर का ओर न छोर
या हम आज डुबो दें तुझको या तू हमें बचाती जा

हम लोगों की आँखें पलकें राहों में कुछ और नहीं
शरमाती घबराती गोरी इतराती इठलाती जा

दिलवालों की दूर पहुँच है ज़ाहिर की औक़ात न देख
एक नज़र बख़शिश में दे के लाख सवाब कमाती जा

और तो फ़ैज़ नहीं कुछ तुझसे ऐ बेहासिल ऐ बेमेहर
इंशाजी से नज़में ग़ज़लें गीत कबत लिखवाती जा

IBNE INSHA
 

मित्रता में कोई स्वार्थ नहीं होता। जहां स्वार्थ होता है, वहां मित्रता नहीं होती।
=======================================
इन अनमोल शुभकामनाओ के लिए आप सभी का हार्दिक आभार!!!!!
आप सभी की ये शुभकामनायें और स्नेह मेरे विचारों को क्षण- प्रतिक्षण और अधिक सशक्त बनाएगे...ऐसा मेरा विश्वास है !!!!!!!!!!!----माधवी .

अब कुछ मीठा हो जाये -----------गाजर का हलुवा !!!!
 
 

दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
मिल जाए तो मिटटी है,खो जाए तो सोना है 


  • एक बार एक स्वास्थ्य मंत्री एक मनोरोगियों के अस्पताल में गया, वह सबसे पहले मुख्य मनोचिकित्सक से मिला फिर उससे पूछने लगा आप कैसे पता लगाते हैं कि एक रोगी बिल्कुल ठीक हो गया है!

    मनोचिकित्सक उसे एक कमरे में ले गया जहाँ कुछ रोगी खड़े थे और पास में एक बाथटब पानी से भरा हुआ था मनोचिकित्सक ने कहा, सर हम उन्हें उस बाथटब के पास ले जाते हैं!

    और उन्हें एक चम्मच और एक कप देते हैं, और उन्हें बाथटब खाली करने को कहते हैं

    हाँ मैं देख रहा हूँ! स्वास्थ्य मंत्री ने कहा! जो बिलकुल ठीक हो जाता है वो तो कप का इस्तेमाल करता होगा ताकि टब जल्दी खाली हो जाए!

    मनोचिकित्सक ने कहा, जी नहीं सर!

    जो बिलकुल ठीक हो जाता है वो सीधे जाकर इलैक्ट्रिक प्लग दबाता है, जिससे पानी खुद-ब-खुद बाहर चला जाता है!
     
     
     

गुरुवार, 10 नवंबर 2011

चेहरे कहां चुप रहते हैं

फ़ेसबुक के तमाम बुकियों को सादर स्नेह ,नमस्कार सहित हरेश भाई द्वारा प्रस्तुत और चाणक्य सिंह जी द्वारा हाईपोथिकेटेड चित्र , आपकी नज़रे इनायत के लिए ये रहा , और कुछ अन्य चेहरों की बातें भी ..देखिए








  • हर बार, जब रात को घर आने पर
    बाहर का खाना ना खाने की इच्छा और
    भूख की तडप, मैगी नूडल खिलाती है

    माँ, तब तेरी बहुत याद आती है




आज का ज्ञान :-
एक मिनट कितना लम्बा होता है यह इस पर निर्भर करता है कि बाथरूम के दरवाज़े के किस ओर आप है !

इन रास्तों पर उसके क़दमों के निशाँ दिखते हैं यूँ धुँधले धुँधले से.... यूँ ही बेखयाली में एक दूसरे का हाथ पकडे चलेंगे कभी न कभी




आवाज़ें। मीठी, तिक्त, गुनगुनाती, सहलाती, दुलराती, थपकाती, दुत्कारती, पुचकारती, बहलाती, भगाती, बुलाती, मिलाती, हटाती, समझाती आवाज़ें। कभी संगी, तो कहीं बैरी आवाज़ें। आवाज़ें, झरनों की, ज्यूं बहनों की। हवा की, ज्यूं प्रेयसी की। समंदर की, जैसे धैर्य स्वर, जिद्दी प्रलय को उत्कट, जो बात न मानी तो संकट लाने को आतुर सुनामी की तरह। की-बोर्ड की, जैसे रचा जा रहा हो तुरत-फुरत में क्षणभंगुर साहित्य। कभी सनसनाती, कभी सिहराती आवाज़ें। मौन तोड़, नया सन्नाटा रचने को आतुर आवाज़ें।
किसी लता ने दरख्त से सटकर कहा है... मेरी कोंपलें तुम्हारा सीना छूकर कुछ उकेरना चाहती हैं। कुरेदना चाहती हैं तुम्हें, ताकि तुम लहलहा उठो।
बांस के दिल में बैठकर हवा ने आवाज़ का जिस्म ओढ़कर मिठास की गंगा बहाई है। एक आवाज़, गुम हो गई थी कहीं, सीप की कोख में, मोती बनने के लिए।
बागानों में उगी चाय की पत्तियों से छनकर आई थी भूपेन हजारिका की आवाज़। पठार में तैर रहा है कितने ही मजनुओं का आर्तनाद और उधर, मथुरा की बयार में व्याप्त है कान्हा का आह्वान। उनकी ओर भागती गोपियों के पैरों की पायल की छनछन की आवाज़ें शहद सी कानों में घुलती जा रही हैं।
आवाज़ों के इस झुरमुट में मन कभी खो जाना चाहे, पुकारे इन्हें तो कहीं दूर हटकर चुप्पियों की चादर ओढ़ने को मन ललचाए। आवाज़ का जंगल दूर-दूर तक फैला है। इनके बीच किस पगडंडी पर ठहरी हुई है मां तुम्हारी लोरी की आवाज़... आओ, सुनाओ न अपनी दैवीय आवाज़ में एक गीत... बहुत कड़ी दोपहर है मां... मैं थोड़ी देर सोना चाहता हूं।




  • इक बचपन का जमाना था ,खुशियों का खजाना था ,,
    चाहत चाँद को पाने की थी ,दिल तितली का दीवाना था ,,
    खबर न थी कभी सुबह कि ,और न शाम का ठिकाना था ,,
    थक हार के आना स्कूल से ,पर खेलने भी जाना था ,,
    दादी की कहानी थी ,परियों का फ़साना था ,,
    बारिश में कागज की नाव थी ,हर मौसम सुहाना था ,,
    हर खेल में साथी थे ,हर रिश्ता निभाना था ,,
    गम की जुबां न होती थी ,न ही जख्मो का पैमाना था ,,
    रोने की वजह न थी ,न हसने का बहाना था ,,
    अब रही न वो जिंदगी ,जैसा बचपन का जमाना था








  • पुस्तक एक ऐसा तोहफ़ा है जो आप बार बार खोल सकते हैं


  • तेरी दी हुई ज़िंदगी एक कर्ज़ की मानिंद है मेरे पास ,
    साल दर साल किश्त चुकाती हूँ ..आज एक किश्त ओर उतर गई ....:)



  • ‎"ऐ दिल तूं आज जरा कंही बैठ करथोडा मुझे सुस्ता लेने दे
    आज मुझे नहीं, आज जरा उसको मेरी याद आ लेने दे
    आशा


कांग्रेसी मुख्य मंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने अन्ना हजारे से कहा कि वे भ्रष्टाचार दूर करना है तो चुनाव लड़कर दिखाएँ.
अन्ना का जवाब ::: आपने तो चुनाव लड़ा, भ्रष्टाचार कितना दूर किया?



Water park'Plitice Lakes. europe..Coratia.




चिंतन

आओ अपने ही अन्दर कुछ ऐसा ढूंढे |
दिल की गहराई में छिपी गहराई ढूंढे |

कहीं न कहीं तो छुपा हुआ है वो राज़ |
सितारे और सूरज जहां पर हैं बेहिसाब |

आपस में जो करते रहते हैं ये बातें |
उन्ही तन्हाइयों में कोई गहराई ढूंढे |

अपने भीतर वो सीपी जिसमे हैं मोती |
वो खानें जहां बन रहें हैं बेशुमार मोती |

चलो आज उन्ही से उनका पता हम पूछें |
वो सूरज जिसकी खातिर जी रहें है लोग |

वो पूनम जिसका नशा पी रहें हैं सब लोग |
आज उन्ही से उस राज़ का हम पता पूछे |

आओ अपने ही भीतर रह कर ये बात पूछे |
आओ अपने ही भीतर रह कर ये राज़ पूछे |




  • Sach hai ekdam
     



    • एक ये ख्वाहिश के कोई ज़ख्म न देखे दिल का
      एक ये हसरत की कोई देखने वाला होता
       

      समय बदल गया है, जमाना बदल गया है,
      एक हमहीं हैं जो सदियों पुराने से लगते हैं..
      By - Myself